BA Semester-5 Paper-1 Sociology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।

उत्तर -

समाजशास्त्र
(Sociology)

मैक्स वेबर के अनुसार, "समाजशास्त्र वह विज्ञान है जोकि सामाजिक क्रिया का निर्वचनात्मक बोध करने का प्रयत्न करता है, जिससे कि इसकी (सामाजिक क्रिया) की गतिविधि तथा परिणामों की कारण सहित व्याख्या प्रस्तुत की जा सके।"

उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि मैक्स वेबर के समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु सामाजिक क्रिया हैं। लेकिन इस सम्बन्ध में, मैक्स वेबर के शब्दों में, "यह स्मरणीय है कि समाजशास्त्र किसी भी अर्थ में केवल सामाजिक क्रिया के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है: हाँ, इतना अवश्य है कि सामाजिक क्रिया समाजशास्त्र का ( कम-से-कम समाजशास्त्र का जिसे कि वेबर ने यहाँ विकसित किया है) केन्द्रीय अध्ययन- विषय और इस समाजशास्त्र को एक विज्ञान की स्थिति प्रदान करने में निर्णायक (decide) कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में समाजशास्त्र के अन्तर्गत हम केवल सामाजिक क्रियाओं का ही अध्ययन करते हैं, ऐसे समझना गलत होगा, इतना अवश्य है कि सामाजिक क्रियाएँ समाजशास्त्र का केन्द्रीय अध्ययन- विषय है, जो कि समाजशास्त्र को एक यथार्थ विज्ञान के स्तर तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होंगी।

यदि मैक्स वेबर की परिभाषा को फिर से दोहराया जाए तो हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र में सामाजिक क्रिया और अर्थपूर्ण बोध, ये दो पक्ष महत्त्वपूर्ण हैं। ऊपर हम सामाजिक क्रिया के विषय में लिख आए हैं, यह हमें 'निर्वचनात्मक बोध' के विषय में भी समझ लेना चाहिए। मैक्स वेबर इस बात पर बल देते हैं कि समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया के साधारण बोध से सन्तुष्ट नहीं होता, बल्कि यह अर्थपूर्ण बोध करने का प्रयत्न करता है। किसी भी घटना या परिस्थिति का 'अर्थ' दो प्रकार का हो सकता है -

1. औसत अर्थ - यह वह अर्थ होता है जोकि साधारणतः समाज के अधिकांश सदस्य लगाते हैं।

2. यथार्थ अर्थ - यह वह अर्थ होता है जो कि एक व्यक्ति परिस्थिति एक सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेने के पश्चात् तर्कसंगत आधार पर लगाता है।

इन दो प्रकार के अर्थ के भेद को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए कि कोई विद्यार्थी किसी परीक्षा में बैठने जा रहा है। वह अपनी परीक्षा के लिए उसकी क्रियाएँ परीक्षा में आने वाले सम्भावित प्रश्न-पत्र, उनको बनाने वाले परीक्षक, पिछड़े वर्षों में पूछे गए प्रश्नों आदि एस सम्बन्धित उन सामान्य अनुमानों पर आधारित होंगी जैसाकि अधिकांश विद्यार्थी लगाते हैं या जैसाकि अधिकांश व्यक्ति करते हैं। यह उक्त परीक्षा से सम्बन्धित परिस्थिति का सामान्य या औसत अर्थ है। इसके विपरीत, उसी परिस्थिति का यथार्थ अर्थ लगाना तब सम्भव होगा जब किसी विद्यार्थी को उस परीक्षा की प्रणीला, वास्तविक परीक्षक, सम्भावित पुस्तकें आदि के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी हो। परीक्षा में सफल अथवा असफल हो जाने पर विद्यार्थी अपने इस यथार्थ अर्थ का वास्तविक मूल्यांकन कर सकता है। इस यथार्थ अर्थ के आधार पर परीक्षार्थी एवं परीक्षक दोनों की ही क्रियाओं की ठीक-ठीक उचित विवेचना की जा सकती है।

मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्रियों को प्रत्येक सामाजिक घटना या क्रिया का इसी प्रकार यथार्थ अर्थ खोजने का प्रयत्न करना चाहिए। अतः यह स्पष्ट है किं मैक्स वेबर का समाजशास्त्र 'अर्थपूर्ण' इसलिए है कि-

(1) इसका संबंध सामाजिक क्रियाओं से है;

(2) इसकी पद्धति का उद्देश्य सामाजिक क्रिया की पूर्णतया तार्किक आधार पर करना है।

इन दो आधारभूत विशेषताओं के कारण ही समाजशास्त्रीय नियम वैज्ञानिक कहे जाते हैं।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि प्रत्येक सामाजिक क्रिया का एक उद्देश्य और एक अर्थ होता है। यह दूसरे व्यक्तियों की क्रिया तथा उद्देश्यों द्वारा प्रभावित होता है। समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं को उनके अर्थ के आधार पर उस रूप में अध्ययन करता है जिस रूप में वे सामाजिक क्रियाएँ दूसरों की क्रियाओं द्वारा प्रभावित हों। इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र को अन्य प्राकृतिक विज्ञानों से पृथक किया जा सकता है। प्राकृतिक विज्ञानों में घटनाओं के उद्देश्य अथवा अर्थ पर विचार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्राकृतिक घटनाएँ तो प्राकृतिक नियम के अनुसार आप से आप घटित होती हैं। परन्तु सामाजिक घटनाएँ तो व्यक्तियों की अन्तः क्रियाओं का परिणाम होती हैं। इसलिए समाजशास्त्र घटनाओं के उद्देश्य और अर्थ दोनों पर अपना अखण्ड ध्यान केन्द्रित करता है।

मैक्स वेबर के अनुसार, समाजशास्त्रीय पद्धति-कारण-साहित व्याख्या (causal explanation) तथा अर्थपूर्ण बोध के बीच एक सन्तुलन स्थापित करने में सफल हुई है। इसके बिना सम्पूर्ण समाजशास्त्र का विज्ञान अवास्तविक हो जाएगा क्योंकि तथ्यों के कारण सहित सम्बन्ध का ज्ञान क्रियाओं के अर्थों को ठीक-ठीक जाने बिना सम्भव नहीं हो सकता। इसके कुछ भी विपरीत होने पर समाजशास्त्र केवल तथ्यों का अर्थहीन वर्णन मात्र रह जाएगा। दूसरे शब्दों में, समाजशास्त्रीय पद्धति का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक घटनाओं के कारणों को ढूँढ निकालना है। परन्तु इन कारणों का पता हम तब तक नहीं लगा सकते जब तक हमें व्यक्ति की सामाजिक क्रियाओं का अर्थपूर्ण बोध न हो जाएगा। यह भी सच है कि सामाजिक क्रिया कोई आप से आप घटित होने वाली या प्राकृतिक घटना नहीं है; सामाजिक क्रिया तो दूसरे व्यक्तियों की क्रियाओं या व्यवहारों द्वारा प्रभावित तथा निर्धारित होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मैक्स वेबर के अनुसार व्यक्ति के द्वारा की गई उस क्रिया का, जोकि अन्य व्यक्तियों की क्रियाओं द्वारा प्रभावित व निर्धारित होती है, अर्थपूर्ण बोध करना और उस बोध के आधार पर सामाजिक कारणों को खोज निकालना समाजशास्त्रीय पद्धति का मुख्य लक्ष्य है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि मैक्स वेबर का समाजशास्त्र दूसरे सामाजिक विज्ञाओं से इस अर्थ में भिन्न है कि आपके समाजशास्त्र में व्यक्ति का (जो कि सामाजिक क्रिया को उत्पन्न करने वाला होता है) स्थान सर्वप्रमुख है। मैक्स वेबर के ही शब्दों में, "अर्थ-निरूपण करने वाला समाजशास्त्र व्यक्ति और उसकी क्रिया को आधारभूत इकाई या 'अणु' के रूप में विचार करता है। इस विज्ञान के क्षेत्र में व्यक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण और अर्थपूर्ण आचरण का एकमात्र वाहक है। मैक्स वेबर का कथन है कि वैसे तो सामान्य रूप से समाजशास्त्र के लिए 'राज्य', 'समिति', 'सामन्तवाद' और इसी प्रकार की अन्य अवधारणाएँ कुछ विशेष प्रकार की मानवीय अन्तः क्रिया को व्यक्त करती हैं, फिर भी समाजशास्त्र का यह कार्य है कि वह इन अवधारणाओं को समझी जा सकने वाली क्रियाओं में बदल दे।

उपर्युक्त आधार पर मैक्स वेबर ने समाजशास्त्रीय नियम तथा प्राकृतिक विज्ञान के नियमों (laws) की व्याख्या की है। आपके अनुसार समाजशास्त्रीय नियमों और प्राकृतिक विज्ञान के नियमों में भेद है। प्राकृतिक विज्ञान के अन्तर्गत नियमों की खोज करना स्वयं एक साध्य ( end) है, लेकिन समाजशास्त्र में ऐसा नहीं है। समाजशास्त्रीय नियमों का उद्देश्य सामाजिक व्यवहार को स्पष्टतः समझना और उसी आधार पर ऐतिहासिक घटनाओं के अन्तः सम्बन्धों की कारण सहित खोज करना है, जहाँ तक कि इन घटनाओं की गतिविधि और परिणाम या प्रकृति तथा कार्य का सम्पर्क है।

अपने समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए मैक्स वेबर सदैव प्रयत्नशील तथा जागरूक रहे। इस उद्देश्य से आपने कठोरपूर्वक 'क्या है' को 'क्या होना चाहिए' से, प्रयोगसिद्ध (empirical) ज्ञान को भविष्य कथन ( prophecy) से तथा सर्वत्र सत्य वैज्ञानिक विश्लेषण को मूल्यांकनात्मक निर्णय (value - judgement) से बिल्कुल अलग है। मैक्स वेबर का दृढ़ विश्वास है कि यदि समाजशास्त्र या अन्य किसी भी सामाजिक विज्ञान को विज्ञान बनाना है, तो उसे दृढ़तापूर्वक केवल

(1) अपने अध्याय को 'क्या है' तक ही सीमित रखना चाहिए;

(2) गैर-आदर्शात्मक (non- normative ) या प्रामाणिक आधार पर मानवीय सम्बन्धों के ऐतिहासिक उद्विकास के विशिष्ट तथा विभेदक (distinguishing ) पक्षों का अध्ययन करना चाहिए;

(3) सामाजिक जीवन की बुनियादी गतिविधियों में पाई जाने वाली घटनाओं के क्रम तथा उसकी क्रियाशीलता एवं परिणामों को कारण सहित जानने का प्रयत्न करना चाहिए;

(4) विभिन्न सांस्कृतिक तत्त्वों की अन्तः क्रिया की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करनी चाहिए 

(5) सर्वत्र सत्य वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करने के लिए भूल्यांकन निर्णयों से बचना चाहिए।

उपर्युक्त यथार्थता तथा सुतथ्यता के आधार पर मैक्स वेबर अपने वैज्ञानिक समाजशास्त्र को यह प्रदर्शित करने का कार्य सौपते हैं कि किस प्रकार एक सामाजिक घटना केवल एक परिणाम को ही जन्म देती है, दूसरे को नहीं, और किस प्रकार एक प्रकार की अवस्थाओं में एक घटना सदैव ही कुछ निश्चित परिणामों को उत्पन्न करेगी, दूसरे किसी प्रकार का परिणाम नहीं। इस प्रकार के विश्लेषणात्मक तथा अर्थपूर्ण अध्ययन तभी सम्भव हो सकते हैं, यदि वे मानवीय संस्कृति की विकासात्मक प्रक्रिया मंण व्यक्त होने वाली सामाजिक शक्तियों के सम्पूर्ण ज्ञान पर आधारित हों।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book